थेरेपी से कितना फ़ायदा हो सकता है, जानिए

यह आलेख हमारी विस्तृत सिरीज़ अंडरस्टैंडिंग थेरेपी का हिस्सा है. 

रत्ना गोलकनाथ

थेरेपी लेने का फ़ैसला आसान नहीं होता है, मन में कई तरह के ख़्याल होते हैं.

किसी पर भरोसा करें या नहीं, क्या यह समय और पैसों की बर्बादी होगी? जैसे सवाल भी उभरते हैं. इतना ही नहीं यह चिंता भी होती है कि उपयुक्त प्रोफेशनल की तलाश कैसे और कहां करें.

सबसे पहली बात तो यही है कि थेरेपी वाला चिकित्सीय संबंध एक सुरक्षित, गोपनीय और सम्मानजनक रिश्ता होता है. इसको लेकर किसी तरह की चिंता ना रखें.

थेरेपी देने वालों की ट्रेनिंग ऐसी होती है कि वे ना तो आलोचनात्मक होते हैं और ना ही निष्कर्ष पर पहुंचने की जल्दबाजी दिखाते हैं. वे आपकी भावनाओं के मुताबिक ध्यान से आपकी बातों को सुनते हैं.

इस प्रक्रिया में आप दोनों साथ होते हैं, लिहाजा थेरेपी की समय सीमा और तौर तरीके को भी आप जिस तरह का चाहें वैसा रखा जा सकता है.

मैं यह आलेख जब लिख रही हूं तो यह सोच रही हूं कि आप या आपका कोई परिचित मुश्किल समय से गुजर रहा है और प्रोफेशनल से मदद लेना चाहता है.

मैं बीते कई सालों से थेरेपिस्ट के तौर पर काम कर रही हूं और इस दौरान मैंने ढेरों लोगों को चिंता और व्याकुलता में देखा है- आप अकेले नहीं हैं.

तो ऐसी ही चिंताओं और उसके निदान के बारे में बताने की कोशिश कर रही हूं-

  1. थेरेपी से मुझे क्या फ़ायदा होगा?

थेरेपी में सबसे पहले एक प्रशिक्षित काउंसलर या मनोचिकित्सक से मिलना होता है. आपकी समस्याओं को सुनने, उसे समझने और उससे उबरने के लिए आपकी मदद करने का इनके पास पेशेवर अनुभव होता है.

थेरेपी को अमूमन बातचीत वाली थेरेपी (टॉक थेरेपी) कहा जाता है क्योंकि इसमें आप अपनी सोच और चिंता, दोनों काउंसलर को बताते हैं. जब आप खुद से अपनी समस्याओं के बारे में बताएंगे तब आपको थेरेपी ज़्यादा कारगर लगेगी.

सहज ढंग से समस्याओं के बारे में बताने पर समस्या के पैटर्न और उसकी बनावट से जुड़े संबंधों का पता लगाया जा सकता है. काजनिएटिव बिहेवियर थेरेपी में कई बार लिख कर समस्याएं बतानी होती हैं, ताकि आपकी सोच, विचार, मनोभाव और एक्शन के आधार पर समस्या का पता लगाया जा सके.

इस थेरेपी का मुख्य लक्ष्य आपके अनुभवों के आधार पर समस्या को संदर्भ के साथ समझना होता है.

 

  1. क्या पहले सेशन में मन की सारी बातें काउंसलर को बतानी चाहिए?

नहीं. निश्चिंत रहे. आप पहली ही मुलाकात में सबकुछ बताएं, ऐसी उम्मीद किसी थेरेपिस्ट को नहीं होती है. एक अच्छी पहली मुलाकात का उद्देश्य थेरेपिस्ट के साथ विश्वास का रिश्ता बनाने का होना चाहिए. आप धीरे धीरे अपनी समस्या बता सकते हैं या फिर ज़रूरत के मुताबिक रफ़्तार बढ़ा सकते हैं. किसी पर विश्वास करने और फिर सारी बातें शेयर करने में वक़्त लगता है.

आप सहज भाव से अपनी समस्या कैसे बताते हैं, इसमें मदद करना भी थेरेपिस्ट की ज़िम्मेदारी है. ज़्यादातर थेरेपिस्ट पहली मुलाकात में आपकी ज़रूरतों को स्पष्ट करते हैं, फिर उसकी प्रक्रिया के बारे में बताते हैं और समय-सीमा को निर्धारित करते हैं.

 

  1. पहले सेशन के लिए खुद को कैसे तैयार करूं?

सबसे पहली बात तो यही है कि आपको खुले दिमाग़ से सेशन के लिए जाना है. कुछ लोग सेशन के लिए अपने सवाल पहले से लिख लेते हैं या फिर जिन मुद्दों पर वे बात करना चाहते है, उसके बारे में लिखकर लाते हैं. जबकि कुछ एकदम खाली दिमाग़ से आते हैं. दोनों ही स्थितियां ठीक हैं.

मैं केवल यह बताना चाहती हूं कि आप एकदम खुले दिमाग़ से जाएं और थेरेपी को आजमाएं. कई बार पहले सेशन में थेरेपिस्ट और उनकी स्टाइल या फिर थेरेपी की जगह से ही तालमेल नहीं बैठता है तो भी थेरेपी को छोड़ने का फ़ैसला नहीं लें. यह पता लगाएं कि आपको क्या पसंद नहीं आया और एक बार फिर थेरेपिस्ट को मौका दें. याद रखें कि कोई भी रिश्ता बनने में समय लगता है, इसलिए सहयोग करने के लिए खुद को तैयार रखें.

 

  1. क्या थेरेपी से बेहतर महसूस होगा?

सच्चाई यह है कि आप एक कोशिश कर रहे हैं और बेहतर महसूस करने का विकल्प बना रहे हैं. थेरेपी एक प्रक्रिया है जिससे आप अपनी सोच और विचार को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे.

ख़ास परिस्थितियों में आप किस तरह व्यवहार करते हैं या किस तरह से उन परिस्थितियों का सामना करते हैं, इसे समझने में मदद मिलेगी. थेरेपी के ज़रिए किन्हीं भी हालात का सामना करने की रणनीति की समीक्षा आप कर सकते हैं. नई रणनीति विकसित कर सकते हैं. साथ में वैसे एक्शन और विचार दोनों से उबर सकते हैं जो कारगर नहीं होते हैं.

किसी भी चीज़ को सीखने, नई तरीकों को अपनाने और पुरानी आदतों से पीछा छुड़ाने के दौरान कुछ अच्छे दिन भी आएंगे और कुछ बुरे दिन भी. कुछ सेशन के दौरान आपको अपने अतीत में झांकने की ज़रूरत होगी.

मुश्किल दिनों और कटु यादों को याद करना आसान नहीं होता है. लेकिन थेरेपी इन सबसे उबरने में मदद करेगी, आपको सशक्त बनाएगी ताकि आप अपने अतीत के अनुभवों और भविष्य की चुनौतियों का सामना कहीं बेहतर ढंग से कर पाएंगे. यह प्रक्रिया हालात से तालमेल बिठाने की क्षमता विकसित करेगी.

 

  1.  बदलाव कितने समय में देखने को मिलेगा?

 

थेरेपी एक प्रक्रिया है. आप जिस तरह का बदलाव चाहते हैं, उसके मुताबिक ही थेरेपी को रूप दे सकते हैं. हालांकि बदलाव आपकी इच्छाशक्ति और बदलाव की चाहत पर निर्भर होगा.

थेरेपिस्ट आप पर बदलाव थोप नहीं सकते हैं- हालांकि वे बदलाव की ज़रूरतों के बारे में बताएंगे और बदलाव लाने में आपकी मदद करेंगे. लेकिन कोशिश आपको ही करनी होगी. बदलाव रातों रात नहीं होते और लंबे समय से चले आ रहे पैटर्न धीरे धीरे बदलते हैं, ख़ासकर तब जब आप अपनी सोच के नए तरीके विकसित कर रहे हों.

सभी थेरेपिस्ट इस बात को समझते हैं, इसलिए एक ही बार में बदलाव के लिए किसी तरह का दबाव महसूस ना करें. थेरेपिस्ट और थेरेपी लेने वाले, दोनों के लिए महत्वपूर्ण है कि वे ऐसी उम्मीद और ऐसा लक्ष्य बनाएं जिसे हासिल करना संभव हो. काजनिएटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) जैसी थेरेपियों में दोनों के लिए तय किए गए लक्ष्यों को लेकर समय सीमा के भीतर समीक्षा करने की ज़रूरत भी होती है. यह प्रक्रिया लगातार दोहराने की ज़रूरत पड़ सकती है.

 

  1. थेरेपी कितने समय तक लेनी होगी? क्या थेरेपी हमेशा लेनी पड़ेगी?

 

अच्छा यह रहेगा कि दूसरे सेशन में आप थेरेपिस्ट के साथ एक समय सीमा तय कर लें क्योंकि तब तक आपकी ज़रूरतें मोटे तौर पर स्पष्ट हो चुकी होती हैं. सीबीटी जैसी थेरेपी में अमूमन 12 से 15 सेशन की ज़रूरत होती है, जबकि कई थेरेपी इससे भी लंबी हो सकती हैं.

Art by Toncy Xavier

आम तौर पर थेरेपी सप्ताह में एक बार की जाती है जो 50 मिनट तक चलती है. हालांकि यह सब काफ़ी कुछ आपकी समस्या और उसके स्तर पर निर्भर करता है. थेरेपी कोई जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया नहीं है. थेरेपी प्रभावी हो इसके लिए उसे ख़त्म करने की बात का ध्यान रखना ज़रूरी है.

कुछ लोगों में ज़्यादा समय तक सहयता लेने की ज़रूरत होती है या फिर उनकी निर्भरता ज़्यादा होती है. इसलिए थेरेपी को इस लिहाज से देखना चाहिए कि आप कब तक अपनी ज़रूरतों और लक्ष्यों से तालमेल बिठाने के लिए तैयार होते हैं.

 

  1. क्या दोस्तों और परिवार के लोगों से बात करना समस्या का हल नहीं है?

 

दोस्तों से बात करने से बेहद अलग है थेरेपी लेना. सबसे अहम बात तो यही है कि थेरेपिस्ट एक न्यूट्रल शख़्स होता है, जिसका आपके और आपके जीवन से कोई लेना देना नहीं है, कोई पूर्वाग्रह नहीं होता है. आपको यह भी समझने की ज़रूरत है कि आप इन सेशन के लिए भुगतान कर रहे हैं, यह आपका समय है और इसलिए आपको अपनी समस्याओं के बारे में बताने में किसी तरह का दोष या बोझ नहीं महसूस करना चाहिए.

थेरेपिस्ट के पास सुनने का प्रशिक्षण होता है. उनकी प्रतिबद्धता आपको समझने और आपको मौजूदा मुश्किल से उबारने की होती है. अच्छे प्रशिक्षण वाले थेरेपिस्ट आपको हमेशा सुरक्षित होने का एहसास दिलाएंगे. वे आपकी बात सहानूभुतिपूर्वक और सम्मानजनक तरीके से सुनेंगे.

आपकी समस्या को सही ढंग से सुनकर वे इससे उबरने की क्षमता विकसित करने में आपकी मदद करेंगे. आपके दोस्त आपको अच्छा महसूस करने की कोशिश करेंगे, जबकि थेरेपिस्ट ऐसा नहीं करते. थेरेपिस्ट की कोशिश आपमें ऐसी क्षमता, नज़रिया और साहस विकसित करने की होगी जिससे आप बेहतर जीवन का आनंद उठा सकें.

 

  1. थेरेपिस्ट की तलाश कैसे होगी? कहां से शुरुआत करूं?

 

भारत में थेरेपिस्ट तलाशन के लिए सबसे कारगर तरीका, थेरेपिस्ट के पास जाने वाले किसी दूसरे शख़्स से उसके बारे में जानना है, ऐसा ज़्यादातर लोग मानते हैं. कई बार डॉक्टरों और स्कूलों से रेफ़रेंस मिलता है. कई बार आप थेरेपिस्ट के ब्लॉग को पढ़कर उनके बारे में जानते हैं. कई बार थेरेपी और थेरेपिस्ट से संबंधित वेबसाइट मिलती है, जिसमें आप अपनी चिंताओं के जवाब तलाशते हैं और फिर आपको वह विश्वसनीय लगता है.

फ़ैसला लेने से पहले कम से कम तीन या चार थेरेपिस्टों को फ़ोन करें, उनसे बातचीत करें. कई बार फ़ोन पर बात करने से आपको किसी भी शख़्स के बारे में अंदाज़ा हो जाता है. चूंकि आप किसी पर भरोसा करने वाले हैं, लिहाजा अपनी तरफ़ से जांच परख कर लें.

इस दौरान, आप चाहें तो गोपनीयता बरतते हुए भी बात कर सकते हैं. आप थेरेपिस्ट से कॉल बैक करने या फिर ईमेल के ज़रिए बात करने को कह सकते हैं. थेरेपिस्ट और थेरेपी लेने वाले के बीच सही तालमेल का होना ज़रूरी है, कई बार थेरेपिस्ट खुद आपके लिए उपयुक्त किसी अन्य थेरेपिस्ट का नाम सुझा सकते हैं.

मेरे ख़्याल से आप इस बात के लिए तो सहमत हो ही चुके हैं कि अगर आपको मदद की ज़रूरत है तो किसी थेरेपिस्ट को फ़ोन करना है, उनसे एप्वाइंटमेंट लेना है. यह सबसे पॉज़िटिव विकल्प है.

गुड लक!

 

लेखिका के बारे मे: रत्ना गोलकनाथ एक प्रशिक्षित काजनिएटिव बिहेवियर थेरेपेस्टि (सीबीटी) हैं. रत्ना बीते 15 साल से भारत में मेंटल हेल्थ के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था सार्थक के साथ काम कर रही हैं. उनके पहले प्रकाशित कॉलम लॉस्ट वायसेज (इन लिंक करें और इसे हटा लें) और बाल शोषण (इनलिंक करें और इसे हटा  दें) भी पढ़ सकते हैं.

(आलेख में निजी विचार हैं. हेल्थ कलेक्टिव, किसी एक्सपर्ट या प्रशिक्षित मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट का विकल्प नहीं हो सकता, मदद के लिए भारत में मौजूद सुविधाएं यहां देख सकते हैं.)

संपादकों के नोट- आप भारत में कार्यरत मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों की सूची यहां देख सकते हैं.

अंडरस्टैंडिंग थेरेपी सीरीज़ का ये लेख भी आप पढ़ सकते हैं- क्या हर किसी की मदद थेरेपी से संभव है, आपकी कहानियां- थेरेपिस्टों से बातचीत.

 

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