Ask the Experts: What’s Troubling our Kids?

वो समस्याएं जो आपके बच्चों-किशोरों को करती है परेशान

डॉ. समीर पारिख

मैं बीते दो दशक से देश भर में बच्चों के साथ काम कर रहा हूं. फोर्टिस समूह के स्कूल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम से जुड़े होने के कारण, हमारी टीम कई स्तरों पर काम करती है.

इसमें छात्र, टीचर और पैरेंट्स सबसे बातचीत करना भी शामिल है. इस प्रक्रिया में हमें मालूम हुआ कि बच्चे और किशोर अपनी जिन समस्याओं के बारे में हमउम्र के साथ बात करते हैं, वह वैसी समस्याएं नहीं होती हैं जिसके बारे में आम तौर पर एडल्ट लोग सोचते हैं.

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ऐसे में ज़रूरी है कि हमें बच्चों और किशोरों की समस्याओं को उनकी नजर से देखने की कोशिश करनी चाहिए. बच्चे और किशोर जिन समस्याओं के चलते हमारे पास आते हैं उनमें शामिल आम वजहें ये हैं-

 

  1. मैं रिलेशनशिप में सहज नहीं हूं- अमूमन एडल्ट इस बात को स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि बच्चों व किशोरों में रिलेशनशिप एक अहम मुद्दा है. वहीं दूसरी ओर, युवाओं में रिलेशनशिप को लेकर कई मुद्दे हो सकते हैं. इसकी शुरुआत यहीं से हो सकती है कि उनकी इन समस्याओं के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता. इसके चलते रिलेशनशिप की समस्याओं का हल वे फिल्मों, किताबों, मित्रों या फिर सोशल मीडिया से सीखे हुए तरीकों से तलाशते हैं. रिलेशनशिप की समस्याओं में, आकर्षण महसूस करना, आकर्षण महसूस करने के बाद क्या करें, से लेकर रिलेशनशिप के उतार चढ़ाव या फिर ब्रेक अप से उबरना या फिर रिजेक्ट किए जाने से उबरना और इन सबका असर जीवन पर हो सकता है.
  2. पैरेंट्स के दबाव का सामना किस तरह से करूंआम तौर पर पैरेंट्स, यह महसूस ही नहीं करते हैं कि उनके बच्चे इस तरह के दबाव का सामना कर रहे हैं. लेकिन बच्चे और किशोर खुद पैरेंट्स के साथ अपने संघर्ष के मुद्दे पर हमसे बात करते हैं. यह क्या क्या करने या फिर क्या क्या ना करने को लेकर माता पिता की पाबंदियां हो सकती हैं या फिर परीक्षा में बेहतर अंकों और पढ़ाई में अच्छा करने के लिए थोपा जाने वाला दबाव हो सकता है, किसी ख़ास खेल या एक्टिविटी में हिस्सा लेने की बात हो सकती है. कई बार ये भी हो सकता है कि बच्चा बात करना चाहता है पर आप उपलब्ध नहीं हों या फिर अपने पैरेंट्स से खुलकर बात करने को लेकर किशोरों में हिचक हो सकती है. वास्तव में, बच्चे और किशोर जो हमसे बात करते हैं, उसमें सबसे ज़्यादा यह सुनने को मिलता है कि मुझे ठीक से नहीं समझा गया या फिर कोई मुझे नहीं समझता है. दरअसल वे उम्र के उस पड़ाव पर होते हैं जहां बदलावों के दौर से गुजर रहे होते हैं.
  3. परीक्षा से निपटने का सबसे बेहतर तरीका क्या है? हां, यह सच है कि परीक्षा के समय में तनाव बढ़ जाता है और यह कई वजहों से होता है. कुछ तो पढ़ाई की वजह से होता है, कुछ खुद और दूसरों की उम्मीद के मुताबिक बेहतर करने का दबाव भी होता है. कुछ दबाव तो कितने अंक आएंगे, इसको लेकर भी होता है. छात्रों के मुताबिक वे इन सबमें संतुलन नहीं बना पाते हैं. मौज मस्ती के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं. छात्रों का कहना है कि वे स्कूल, घर की पढ़ाई और एक्स्ट्रा क्लासेज या फिर कोचिंग, इन सबमें सैंडविच बनकर रह जाते हैं. छात्र टाइम टेबल ज़रूर बनाते हैं लेकिन उसे कभी लागू नहीं कर पाते हैं. वास्तव में, परीक्षा संबंधी दबावों को पढ़ाई के लिए प्रभावी और कारगर तरीका अपना कर भी काफी हद तक कम किया जा सकता है.
  4. पीयर्स प्रेशर का बहुत ज़्यादा होना- किशोरों के जीवन में दोस्तों-साथियों का होना सबसे महत्वपूर्ण पहलू है. वे मित्रता और साथ के लिए ऐसा चाहते हैं साथ ही खुद की पहचान और उसकी स्वीकृति के लिए भी ये ज़रूरी होता है. हमारे साथ पीयर्स प्रेशर को लेकर जिन चिंताओं की बात युवाओं और किशोरों ने की, उससे ये जानने को मिला कि कई बार वे जो नहीं करना चाहते हैं वैसा काम भी पीयर्स प्रेशर के चलते करते हैं. जिसमें किसी को डराना धमकाना या फिर समूह के कामों में शामिल हो जाना इत्यादि शामिल है. किसी भी किशोर के जीवन में सबसे ज़्यादा असर डालने वाला समूह होता है पीयर्स ग्रुप लिहाजा इन प्रभावों को कारगर तरीके से संभालना ज़रूरी है.
  5. समय प्रबंधन की चुनौती: छात्रों की सबसे बड़ी समस्या होती है समय का प्रबंधन. उन्होंने ना केवल अपने अध्ययन और खेल कूद के लिए समय के बीच तालमेल बिठाना होता है बल्कि उन्हें खुद के लिए भी थोड़ा समय निकालना होता है. सच्चाई यह है कि छात्र आजकल अपने घरों में बंद होकर गैजेट्स और टेक्नॉलॉजी में ख़र्च करते हैं. अमूमन इनके पास आउटडोर खेलने कूदने का वक्त नहीं होता है. आमतौर युवाओं की शिकायत यह होती है कि उनके पास कोई समय नहीं बचता है और वे कुछ भी अलग नहीं कर पा रहे हैं.
  6. आत्म विश्वास की कमी: ज्यादातर वयस्क यह मानते हैं कि किशोरों में आत्म विश्वास अधिक होता है. लेकिन हमें ऐसे बच्चों और किशोर मिले जो हमारे पास इसलिए आए क्योंकि वे कम आत्म विश्वास महसूस करते हैं और इसकी वजह से चिंता में हैं. यह कई वजहों से हो सकता है. कई बार घबराहट विशेष चुनौती की वजह से उत्पन्न हो सकता है- जैसे कि किसी इंटरव्यू में किसी सवाल का जवाब देते वक्त घबराहट महसूस कर सकते हैं, या फिर स्टेज पर किसी प्रदर्शन के दौरान ऐसा हो सकता है या फिर ऐसी ही किसी सामाजिक स्थिति में यह संभव है. यह शरीर की छवि, पढ़ाई में प्रदर्शन, खेल और अन्य गतिविधि के संदर्भ में अपने बारे में कैसा महसूस करते हैं, इससे जुड़ा हो सकता है. वास्तव में, आत्म सम्मान और आत्म विश्वास के ऐसे स्तर भी उन्हें अपने स्वयं, उनकी क्षमताओं और आत्म मूल्यों पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं. इसके अलावा दोस्तों, पैरेंट्स, शिक्षकों और आसपास के लोगों के फीडबैक से भी ऐसा संभव है. इतना ही नहीं, आजकल की सोशल प्लेटफॉर्म्स पर भी लोग काल्पनिक दुनिया की लोकप्रियता का आकलन करते हैं.
  7. मैं अच्छा महसूस नहीं कर रहा हूं:  सबसे अंत में, मेरे विचार में किसी युवा और किशोर का यह कहना है कि वह अच्छा महसूस नहीं कर रहा है या रही है, यह सबसे निराश करने वाली बात है. मुझे इस बात पर अचरज होता है कि हम लोग किस तरह की व्यवस्था बना रहे हैं जिसमें बच्चे और किशोर खुशी महसूस नहीं कर रहे हैं. जबकि यह दौर उनके जीवन के सबसे खुशी के सालों का होना चाहिए. लेकिन कई वजहों से यह सच्चाई बन चुका है और युवाओं से यह सुनना है कि वे अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं, अब आम बात हो चुकी है. उन्हें लगता है कि उन्होंने कोई नहीं समझ रहा है ऐसे में वे अपनी अवधारना के साथ सामने आने से भी बचते हैं.

 

निष्कर्ष के तौर पर, मेरा मानना है कि युवाओं के दिमाग को मनोवैज्ञानिक तौर पर बेहतर बनाने और उनके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए सबसे पहले उनकी चिंताओं को उनके नज़रिए से समझना ज़रूरी है. इसके बाद ही उन्हें जिस तरह के बदलावों की ज़रूरत है, उसकी पहचान करनी चाहिए. युवा अपने अनुभवों से सीखें, सक्षम बनें, आपसी रिश्तों को बेहतर बनाएं, इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित किए जाने की ज़रूरत है. इसके अलावा संवाद, आपसी बातचीत, समस्याओं के निदान और संबंधों का प्रबंधन जैसे मामलों में वे अपने कौशल को निखार पाएं, इसके लिए भी उन्हें तैयार किए जाने की ज़रूरत है.

वास्तव में, भावनात्मक मजबूती और परिस्थितियों के मुताबिक तालमेल बिठाने के लिए, लोगों के साथ बातचीत की खासियत की भूमिका बेहद अहम होती है. ऐसी क्षमता विकसित होने से, छात्र ज्ञान और प्रतिस्पर्धा की होड़ में सशक्त होते हैं साथ ही दुनिया की चुनौतियों का सामना करने के लिए ज़रूरी दक्षता के साथ भावनात्मक रूप से सक्षम होते हैं. उनके अंदर चीज़ों के मुताबिक ढलने की व्यवस्था भी विकसित होती है.

(आलेख में निजी विचार हैं. हेल्थ कलेक्टिव, किसी एक्सपर्ट या प्रशिक्षित मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट का विकल्प नहीं हो सकता, मदद के लिए भारत में मौजूद सुविधाएं यहां देख सकते हैं.)

 

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