कोविड-19 के समय में एंग्जाइटी को कैसे संभालें- प्रोफेसर स्टीव जोर्डेंस से सीखिए खुद पर नियंत्रण करना
अमृता त्रिपाठी
कुछ महीने पहले मैंने अमरीकी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कोर्सेरा पर मनोविज्ञान की इंट्रो जानकारी हासिल की. यह ऑनलाइन क्लास यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरंटो स्कारबरा में मनोविज्ञान के प्रोफेसर स्टीवन जोर्डेंस की है. मैंने इससे काफ़ी कुछ सीखा.
कोरोना वायरस से फैली महामारी के समय में व्यक्तिगत तौर पर मुझे लग रहा है कि भावनाओं पर क़ाबू नहीं रह रहा है. समय समय पर तरह तरह के भाव मन में आ रहे हैं, अपने बारे में सबकुछ जानने के बाद भी बहुत खुश होने का भाव भी उनमें एक है. ऐसे वक्त में मैंने देखा कि प्रोफेसर जोर्डेंस ने मौजूदा वक़्त में एंग्जाइटी को संभालने के लिए एक छोटा पाठ्यक्रम जारी किया है.
आप इस पाठ्यक्रम माइंड कंट्रोल: मैनेजिंग योर मेंटल हेल्थ ड्यूरिंग कोविड-19 को कोर्सेरा के इस लिंक पर देख सकते हैं. मेरी सलाह है कि आप इसे अवश्य देखें. इससे मुझे काफ़ी कुछ समझने को मिला, मुझे अपनी प्रतिक्रियाओं पर सोचने समझने का मौका मिला ताकि मैं खुद को बेहतर रख सकूं.
मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि ईमेल के ज़रिए मैंने प्रोफेसर जोर्डेंस से कुछ सवाल पूछे. उन्होंने उसके जवाब भेजे हैं. आप इसे पढ़िए और अपने विचारों से अवगत कराइए. वैसे आप इतना जानिए कि आपके दिमाग़ में जो कुछ भी चल रहा है, उसे झेलने वाले आप अकेले नहीं हैं.
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- पहला सवाल तो यही है कि दुनिया भर में जिस तरह का अप्रत्याशित संकट सामने आया है, उसमें उन लोगों के बारे में आप क्या सोचते हैं जिनकी एंग्जाइटी बढ़ गई है? इस समस्या को देखकर ही लोगों में एंग्जाइटी आ गई है, इस बारे में आप क्या साझा करना चाहेंगे, हो सकता है इससे लोगों को मालूम होगा कि ऐसा केवल उनके साथ ही नहीं हो रहा है.
प्रोफेसर जोर्डेंस: अगर आप अब भी चिंतित नहीं हैं, इसका मतलब यही है कि आपका ध्यान इस समस्या पर नहीं है. हम लोग जिसे एंग्जाइटी कहते हैं, दरअसल वह विशेष स्थितियों में अस्तित्व बचाने की कोशिश का रिफलेक्शन भर है, यानी यह कुछ समय के लिए सक्रिय हो जाता है. इसे स्पष्टता से समझने के लिए, कल्पना कीजिए आप जामुन इक्ट्ठे कर रहे हैं और अचानक आगे आपको भालू दिखाई देता है. यह आपके अस्तित्व का सवाल है. आपका दिमाग़ इस ख़तरे को तुरंत भांप लेता है और आपका सहानुभूति तंत्र काम करने लगता है. आपकी आंखें चौड़ी हो जाती हैं, ज़्यादा देखने की कोशिश करने लगती हैं. हृदय तेज़ी से धड़कने लगता है. सांस तेज़ी से चढ़ने लगती हैं. शरीर का पाचन तंत्र काम करना बंद कर देता है. ऐसा लगता है कि शरीर का खून माथे और कनपटियों से निकलने लगा है. पूरे शरीर में एक नई ऊर्जा महसूस होती है. आपके सामने दो ही रास्ते हैं या तो आप भागने की कोशिश करें या फिर भालू के साथ संघर्ष करें. आप जो भी करते हैं उससे या तो आपकी मौत हो जाएगी या फिर कुछ ही मिनटों में पूरी बात समाप्त हो जाएगी.
हमारे दिमाग़ के लिए कोविड संक्रमण का ख़तरा भालू जैसा ही है. हमारा शरीर ठीक उसी तरह रिएक्ट करता है, शरीर में कुछ करने वाली बेचैनी शुरू हो जाती है. ऐसी स्थिति में लगता है कि आपका दिमाग़ आपके ऊपर ही चिल्ला रहा है.
समस्या यह है कि कोविड संक्रमण कहीं दूर नहीं जा रहा है और अभी इसके बारे में इतनी कम जानकारी है कि यह भालू से ज़्यादा डरावना लग रहा है. यानी हमलोगों को लंबे समय तक ऐसी स्थिति में रहना होगा. हमारा सिस्टम इसके लिए नहीं बना है और अगर हम अपनी एंग्जाइटी को ठीक से नहीं संभाल पाएंगे तो हमारी प्रतिरोधी क्षमता प्रभावित होगी. जब कोरोना वायरस आस पास हो तो प्रतिरोधी क्षमता का कम होना अच्छी चीज़ नहीं होगी.
- आपने सोशल रिलेशंस पर जोर दिया है, ख़ासकर आपने कहा है कि सोशल डिस्टेंसिंग ग़लत चुनाव है क्योंकि हमलोग फिजिकल डिस्टेंसिंग की बात कर रहे हैं, यह समय सोशल डिस्टेंसिंग के लिए नहीं है बल्कि सामाजिक तौर पर जुड़ने और जुड़ाव को मजबूत करने का है. क्या इसे थोड़ा और समझाएंगे?
प्रोफेसर जोर्डेंस: मनुष्य जन्म से ही सामजिक प्राणी है. जन्म होने और उसके बाद कई सालों तक हम दूसरे मनुष्यों पर निर्भर रहते हैं. मनुष्य प्रजाति का दबदबा दिखता है तो इसकी वजह यही है कि हमें एक दूसरे की ज़रूरत होती है और हम एक दूसरे की मदद करते हैं. इतना ही नहीं, दुख और पीड़ा के समय में हम अपने नजदीकी सामाजिक संबंधों तक पहुंच जाते हैं. भावनात्मक रूप से उनसे जुड़कर हम अपनी चिंताओं को दूर करते हैं. इसलिए कोविड संक्रमण के ख़िलाफ़ लड़ाई में हमें ऐसे भावनात्मक जुड़ाव की कहीं ज़्यादा ज़रूरत है.
फिजिकल डिस्टेंस रखना है. लेकिन सामाजिक तौर पर हमें दूसरों तक पहुंचना चाहिए. फोन और ऑनलाइन मीटिंग प्लेटफॉर्म के ज़रिए हम संपर्क करना चाहिए. हाव भाव वाली सूचनाओं (मसलन आवाज़ की टोन, शरीर के हाव भाव आदि) को शेयर करने की अनुमति होनी चाहिए. यह इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि इससे हम भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं और इसमें बीमारी का इलाज भी निहित है.
- आपने अपने माइंड कंट्रोल कोर्स में कुछ उपयोगी सुझाव दिए हैं, जिसमें कनेक्ट करने के लिए कुछ तरीके सीखने की बात भी शामिल है. आपने कहा है कि सोशल प्लेटफॉर्म पर जिस तरह के संपर्क दिखते हैं प्राय वे गंभीर नहीं होते हैं, इससे अलग तरीके सीखने की ज़रूरत है. क्या इसे थोड़ा विस्तार से बताएंगे?
प्रोफेसर जोर्डेंस: हां ज़रूर, हममें से कई लोग अपने नेटवर्क में सपंर्क करने के लिए सबसे तेज़ और आसान रास्ता विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को मानते हैं. अगर आप कोई बातचीत शुरू करते हैं या कोई छोटी मोटी प्रतिक्रिया देते हैं तो उसके लिए यह ठीक है. लेकिन कई बार ईमोजी के सहारे व्यक्त करने की कोशिशों के बाद भी भावनात्मक लिहाज से यह बहुत गंभीर माध्यम नहीं है. जैसे कि कोई आपके किसी कमेंट में LOL लिखे तो इसका वह असर नहीं होगा जो आपके जोक सुनने के बाद आदमी की हंसी में होता है. इसके अलावा भी आप LOL लिखे जाने में आप उसमें हंसी से उपजे भावों को नहीं सुन पाते हैं.
भावनात्मक जुड़ाव के लिए आपको कहीं गहरे उतरना होता है, आपको एक दूसरे से कुछ ज़्यादा केयरिंग सवाल पूछने होते हैं. लेकिन जैसा कि मैंने ऊपर कहा है कि, मेरा भरोसा है कि हम फ़ोन या फिर वर्चुअल मीटिंग के ज़रिए भी कनेक्ट हो सकते हैं लेकिन उसमें शरीर के हाव भाव को देखने की अनुमति होनी चाहिए.
- इस समय में तनाव और एंग्जाइटी को दूर करने के लिए आप क्या सलाह देंगे, ख़ासकर जब अनिश्चितता का माहौल हो?
प्रोफेसर जोर्डेंस: मैंने अपने कोर्स को इस तरह डिज़ाइन किया था जिससे छात्रों को अपनी एंग्जाइटी को नियंत्रित करने की जानकारी और रणनीति मालूम हो जाए. यह क्लिनिकल साइकोलॉजी तो नहीं है लेकिन बेसिक साइकोलॉजी है.
एंग्जाइटी के वक़्त दिमाग़ आपके शरीर को कुछ समय के अस्तित्व बचाने वाले मोड में लाने की कोशिश करता है और जब आप इसे समझ लेते हैं तब आप अपने दिमाग़ को नियंत्रित रख सकते हैं. इसलिए मेरे पाठ्यक्रम का टाइटिल ही है- माइंड कंट्रोल.
इसमें बेहद सामान्य बातें हैं-
- रिलैक्स रहने के तरीके सीखना (आप एक ही समय में रिलैक्स और एंग्जाइटी में नहीं रह सकते)
- कोविड से ध्यान हटाने के लिए कुछ गतिविधियों को तलाशना और उन गतिविधियों को करना
- कुछ दूसरी गतिविधियों को सीखना, जैसे कि पहले से रिकार्डेड म्यूजिक पर गाने की कोशिश करना. इससे एंग्जाइटी कम होती है
मोटे तौर पर आपको अपने चेतन मस्तिष्क पर नियंत्रण रखने की कोशिशों के बारे में सीखना है. यह इंसानों के लिए आदिम शारीरिक प्रक्रिया ही है, जैसे कि कुछ गुरू महात्मा मानसिक नियंत्रण से ही अपनी हृदय गति को नियंत्रित कर लेते हैं. हालांकि मैं जो बातें अपने छात्रों को बताता हूं उसकी तुलना में गुरु महात्माओं का काम ज़्यादा मुश्किल भरा है.
- एंग्जाइटी पर नियंत्रण का जो विचार है वह काफ़ी हद तक हमलोगों की विचारों से मिल रहा है. ख़ासकर मेरे विचारों से. जैसे कि हमलोग भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अब तक बनी धारना को बदलने के लिए काम कर रहे हैं, इसके लिए हम लोगों की कहानियों को सामने ला रहे हैं, कामिक्स बना रहे हैं और एक्सपर्ट लोगों के कॉलम प्रकाशित कर रहे हैं. आप हमारे पाठकों के लिए कुछ सलाह देंगे? आपने अपने पाठ्यक्रम में कहा है कि कुछ पॉज़िटिव भूमिका निभाने का रास्ता तलाशना चाहिए.
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प्रोफेसर जोर्डेंस: हां, जैसा कि मैंने बताया है कि एंग्जाइटी का मतलब ही है कि दिमाग़ चिल्ला रहा है कि ‘कुछ करो..’. इसलिए आइसोलेशन में रहते हुए चीज़ों को पूरा करना एक तरह से उसका जवाब देना ही है. मैं कुछ कर रहा हूं या देखो मैं ने किन अच्छी चीज़ों को पूरा कर लिया है. यह एक स्वभाविक तरीका है जिसके ज़रिए आप खुद को ज़्यादा नियंत्रित पाएंगे. किसी भी तरह की अनिश्चितता में किसी भी तरह का नियंत्रण महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. कई तरह के पाठ्यक्रम ऑनलाइन उपलब्ध हैं, वह भी मुफ़्त. आप कोई म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट बजाना सीख सकते हैं, यह कोई नया काम कर सकते हैं, या फिर अपने फ्रीज की सफाई कर सकते हैं. किसी भी काम को पूरा करने से आप बेहतर महसूस करेंगे.
डिस्क्लेमर – यहां निजी विचार व्यक्त किए गए हैं.
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