डिप्रेशन के बारे में कितना कुछ जानते हैं आप, एक्सपर्ट से समझिए
मीरा हरन अल्वा
भारत में डिप्रेशन
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की संस्था वर्ल्ड मेंटल हेल्थ की मदद से हुए अध्ययन के मुताबिक क़रीब 36% भारतीय अपने जीवन में कभी ना कभी बहुत ज़्यादा डिप्रेशन में होते हैं. जब एक तिहाई से ज़्यादा आबादी इस समस्या की चपेट में हो तो इस समस्या के बारे में जानना और दूसरों को जागरूक बनाना ज़रूरी है, क्या आप ऐसा नहीं सोचते?
मैं बीते 15 साल से भारत में मनोचिकित्सक हूं. इस दौरान, मेंटल हेल्थ से जुड़ी बीमारियों को लेकर बड़ा बदलाव देखने को मिला है, लोग बीमारी और उसके असर को अब स्वीकार करने लगे हैं. इसका असर मेरी अपनी प्रैक्टिस पर भी पड़ा है- एक दशक पहले तक जहां हमें एक मरीज़ के लिए इंतज़ार करना होता था, वहीं अब एक पूरा शिड्यूल पहले से बनाना पड़ता है. जिन लोगों के साथ मैं काम करती हूं उनमें क़रीब 60 फ़ीसदी लोगों की मुख्य चिंताओं में डिप्रेशन शामिल है.
डिप्रेशन है क्या?
चिकित्सीय शब्दावली में, दुर्बल बनाने वाली मनोदशा संबंधी विकार है डिप्रेशन. मतलब आपका मूड ऐसा हो जाए कि आप का उत्साह जाता रहे और आप हमेशा बुझे-बुझे और चिड़चिड़े महसूस करें. वैसे यह अलग अलग रूपों में प्रकट हो सकता है. मेरा मानना है कि हम सब अपने जीवन में कभी ना कभी मानसिक स्वास्थ्य की समस्या का सामना करते हैं, उदासी, गुस्सा और निराशा के रूप में.
कई लोग संवदेनशील तौर पर नाज़ुक जीवन भी जीते हैं जो एक तरह उस छोर पर होते हैं जहां वे बेहद निराश और मायूसी में होते हैं. बहुत सारे ऐसे भी होते हैं जिनकी जांच नहीं हुई है लेकिन वे बीच वाली स्थिति में होते हैं, जो अचानक से उदास हो जाते हैं. अमरीकी कॉमेडी स्टार जेस्सी केलिन ने इस समस्या को खूब पर्दे पर उतारा है, “हर वक़्त थोड़ा उदास होना.”
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डिप्रेशन के लक्षण:
ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) ने डिप्रेशन के लक्षणों की एक विस्तृत सूची बनाई है और यह उनकी वेबसाइट पर मौजूद है.
एक नजर इन लक्षणों को देखें और यह मालूम करें कि क्या ये लक्षण कई सप्ताह या कई महीने से आपको, आपके काम को, आपकी फैमिली लाइफ़ और सोशल लाइफ़ को प्रभावित तो नहीं कर रहे हैं. डिप्रेशन के लक्षणों से यह भी जाहिर होता है कि डिप्रेशन किस तरह से किसी भी आदमी को मानसिक, भावनात्मक, शारीरिक और सामाजिक ज़िंदगी को प्रभावित करता है.
अगर डिप्रेशन के लक्षणों की पहचान शुरुआत में ही कर ली जाए तो फिर हालात बिगड़ने से पहले आप मदद ले सकते हैं. ऐसी स्थिति में परिवार और दोस्तों की मदद से भी लाभ होता है लेकिन डिप्रेशन की मूल वजहों को जानने के लिए पेशेवर यानी मनोचिकित्सकों से सलाह लेनी चाहिए.
ज़्यादातर मामलों में डर और घबराहट की कोई तार्किक वजह नहीं होती, ऐसे में ये क्यों हो रहा है, उसका पता चलने से समझ विकसित होती है, जागरूकता बढ़ती और निदान की कोशिशें बेहतर होती हैं.
अगर लक्षण गंभीर हों और उसका असर दिन प्रतिदिन की ज़िंदगी पर पड़ रहा हो तब दवा लेनी की ज़रूरत होती है.
लोगों में डिप्रेशन की प्रवृति को बढ़ाने वाले ये तीन कारक हैं-
आनुवांशिक वजह: शोधकर्ताओं का मानना है कि डिप्रेशन पीड़ितों में करीब 40 प्रतिशत लोग जेनेटिक कारणों से इसकी चपेट में आते हैं. मतलब अगर माता-पिता में डिप्रेशन के लक्षण रहे हों तो वो अगली पीढ़ी को पहुंच जाते हैं. अनुसंधान के मुताबिक जिन लोगों के माता पिता या फिर भाई-बहन में डिप्रेशन के लक्षण होते हैं उनमें डिप्रेशन के लक्षण होने की आशंका तीन गुनी ज़्यादा होती है. पर्यावरण और दूसरे कारकों की वजह से 60 प्रतिशत लोग डिप्रेशन की चपेट में आते हैं.
बड़ी घटनाएं: जीवन की बड़ी घटनाएं भी डिप्रेशन को बढ़ा सकती हैं, इसे रिएक्टिव डिप्रेशन कहते हैं. मतलब बच्चे का जन्म, डायवोर्स, किसी प्रिय का निधन, नौकरी जाने का डर, बच्चों का घर से बाहर जाना, इत्यादि वजहें भी डिप्रेशन को बढ़ा सकती हैं.
शारीरिक वजह: शराब या फिर किसी अन्य नशे पर निर्भरता से भी डिप्रेशन की स्थिति उत्पन्न होती है. अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक नशे की प्रवृति और मनोदशा विकास एक साथ शरीर को अपनी चपेट में लेते हैं. इसके अलावा हृदय रोग, स्ट्रोक, कैंसर, एचआईवी-एड्स, डायबिटीज और पार्किंसन जैसी गंभीर बीमारियों के चलते भी डिप्रेशन उत्पन्न हो सकता है.
डिप्रेशन का गुस्से से नाता
डिप्रेशन से अमूमन गुस्सा कम होता है. लेकिन हाल के सालों में कुछ युवाओं में मैंने ये नोटिस किया है कि डिप्रेशन की स्थिति में उनमें खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृति बढ़ी है, जो एक तरह से उनके गुस्से को ही ज़ाहिर करता है. गुस्से के भाव को भी हमलोग ठीक से नहीं समझते हैं. अमूमन यह जिस तरह से ज़ाहिर होता है उसके चलते इसे पॉज़िटिव नहीं माना जाता है. लेकिन अगर हमने अपने गुस्से को नियंत्रित करना सीख लिया तो इसका इस्तेमाल हम आगे बढ़ने, खुद को प्रेरित करने और खुद की रक्षा करने में कर सकते हैं. लेकिन अगर इसकी सही समझ नहीं हुई तो जो गुस्सा आपको आगे बढ़ा सकता है, आपकी सुरक्षा कर सकता है वही आपको नुकसान भी पहुंचा सकता है.
उम्मीद
डिप्रेशन किसी की व्यक्तिगत नाकामी या कमज़ोरी नहीं है. यह ना तो आपकी पहचान है और ना ही आपका व्यक्तित्व. इसे आप एक बीमारी या स्थिति कह सकते हैं. यह एक तरह का अनुभव और लक्षण भी है जो आप महसूस करते हैं. इससे उबरने की दिशा में पहला क़दम इसे स्वीकार करना है. इसके बाद हमेशा उम्मीद होती है. डिप्रेशन को स्वीकार करने के बाद मदद लेनी चाहिए. मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं लेने से हिचकना नहीं चाहिए. ये बात भी ध्यान रखना चाहिए कि आप अकेले नहीं हैं.
मीरा हरन अल्वा बेंगलुरू में मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक हैं. वे पिछले 15 सालों इस क्षेत्र में काम कर रही हैं. बेंगलुरु के स्टोनहिल इंटरनेशनल में मीरा सलाहकार मनोवैज्ञानिक के तौर पर संबंद्ध हैं, जहां वे बच्चों और उनके माता पिता को सलाह देती हैं. इसेक अलावा वयस्कों को देखने को लिए निजी तौर पर प्रैक्टिस भी करती हैं. मीरा इनके अलावा मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों और बाल संरक्षण अधिकार की प्रखर समर्थक भी हैं.
मीरा के बारे में ज़्यादा जानकारी यहां मिल सकती है, आप उनसे एप्वाइंटमेंट भी ले सकते हैं.
Feature Image: Kishore Mohan for The Health Collective
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